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Sunday, July 31, 2016

रेल्वे स्टेशन पर भिक मांगने से समाज में रोल मॉडल तक का सफर


         दोस्तों ये कहानी एक गरीब महिला की है जो एक ज़माने में Railway Station पर भिक मांगा करती थी। लेकिन  आज उनकी समाज में बहुत Respect है। जी हा दोस्तों वो महिला का नाम है "सिंधुताई सपकाल"
        दोस्तों हम अक्सर शिकायत करते हैं कि अगर हमें सुविधाएं मिलती तो हम भी कुछ बन कर दिखा देते। पर अगर हम अपने आस-पास ध्यान से देखें तो हमें ऐसे अनेक लोग मिल जाएंगे, जिनके पास सुविधा नाम की कोई चीज नहीं थी, पर उन्होंने वह काम कर दिखाया जो सभी सुविधाओं को होते हुए भी हम नहीं कर पाते हैं। ऐसा ही एक नाम है सिंधुताई सपकाल का।पूर्वी महाराष्ट्र के नवरगांव के गरीब चरवाहा परिवार में जन्मी 62 वर्षीय सिंधुताई सपकाल ने सिर्फ कक्षा चार तक ही शिक्षा प्राप्त की है। सिंधुताई को प्यार से सभी माई कह कर बुलाते हैं। सिंधुताई से माई तक का यह सफर कांटों भरा था। उस समय की परंम्परा के अनुसार सिंधुताई का विवाह 9 वर्ष की अल्प आयु में 30 वर्ष के युवक के साथ कर दिया गया था। सिंधुताई को पढ़ने का बहुत शौक था। इसलिए जिस पेपर में पति सामान लपेट कर घर लाते, सामान रखने के बाद वह उसे पढ़ने लगती। पति को उनकी यह बात कभी अच्छी नहीं लगती थी, इसलिए अक्सर उन्हें इस अपराध के लिए पति के हाथों पिटाई सहनी पड़ती। सिंधुताई कहती है कि ऐसा इसलिए होता था क्योंकि पति को लगता था कि इस तरह मैं उन्हें नीचा दिखाना चाहती हूं, जबकि ऐसा था नहीं, मैं सिर्फ और सिर्फ पढ़ना चाहती थी बस! तीन बेटों को जन्म देने के उपरांत चौथी बार जब वे गर्भवती हुई तो पति ने उन्हें छोड़ दिया। इसलिए चौथे बच्चे का जन्म जो बेटी थी एक गौशाला में हुआ। जहां उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था इसलिए पास पड़े पत्थर से गर्भनाल काटना पड़ा। मां ने जब बेटी के बारे में सुना तो वे उसे और उसकी नवजात बेटी को अपने साथ ले गई। लेकिन उनके पास भी इतने साधन नहीं थे कि वे अपनी बेटी और नवासी का पालन-पोषण कर पातीं। अपनी जीविका चलाने के लिए सिंधुताई सड़कों, रेलवे प्लेटफार्म और गाड़ियों में गाना गाकर भीख मांगती थीं। अपनी परिस्थितियों से तंग आकर उन्होंने दो बार आत्महत्या का भी प्रयास किया। पहली बार असफल रही। दूसरी बार जब वे आत्महत्या करने Railway Track पर  जा रही थी बेटी की रोने की आवाज ने उनके बढ़ते कदमों को रोक दिया और यही वह पल था जिसने उनकी पूरी सोच को बदल दिया तथा जीने का एक उद्देश्य भीदेहम अक्सर शिकायत करते हैं कि अगर हमें सुविधाएं मिलती तो हम भी कुछ बन कर दिखा देते। पर अगर हम अपने आस-पास ध्यान से देखें तो हमें ऐसे अनेक लोग मिल जाएंगे, जिनके पास सुविधा नामकी कोई चीज नहीं थी, पर उन्होंने वह काम कर दिखाया जो सभी सुविधाओं को होते हुए भी हम नहींकर पाते हैं। ऐसा ही एक नाम है सिंधुताई सपकाल का।पूर्वी महाराष्ट्र के नवरगांव के गरीब चरवाहा परिवार में जन्मी 62 वर्षीय सिंधुताई सपकाल ने सिर्फ कक्षा चार तक ही शिक्षा प्राप्त की है। सिंधुताई को प्यार से सभी माई कह कर बुलाते हैं। सिंधुताई से माई तक का यह सफर कांटों भरा था। उस समय की परंम्परा के अनुसार सिंधुताई का विवाह 9 वर्ष की अल्प आयु में 30 वर्ष के युवक के साथ कर दिया गया था। सिंधुताई को पढ़ने का बहुत शौक था। इसलिए जिस पेपर में पति सामान लपेट कर घर लाते, सामान रखने के बाद वह उसे पढ़ने लगती। पति को उनकी यह बात कभी अच्छी नहीं लगती थी, इसलिए अक्सर उन्हें इस अपराध के लिए पति के हाथों पिटाई सहनी पड़ती। सिंधुताई कहती है कि ऐसा इसलिए होता था क्योंकि पति को लगता था कि इस तरह मैं उन्हें नीचा दिखाना चाहती हूं, जबकि ऐसा था नहीं, मैं सिर्फ और सिर्फ पढ़ना चाहती थी बस! तीन बेटों को जन्म देने के उपरांत चौथी बार जब वे गर्भवती हुई तो पति ने उन्हें छोड़ दिया। इसलिए चौथे बच्चे का जन्म जो बेटी थी एक गौशाला में हुआ। जहां उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था इसलिए पास पड़े पत्थर से गर्भनाल काटना पड़ा। मां ने जब बेटी के बारे में सुना तो वे उसे और उसकी नवजात बेटी को अपने साथ ले गई। लेकिन उनके पास भी इतने साधन नहीं थे कि वे अपनी बेटी और नवासी का पालन-पोषण कर पातीं। अपनी जीविका चलाने के लिए सिंधुताई सड़कों, रेलवे प्लेटफार्म और गाड़ियों में गाना गाकर भीख मांगती थीं। अपनी परिस्थितियों से तंग आकर उन्होंने दो बार आत्महत्या का भी प्रयास किया। पहली बार बस में प्रवास कर रही थी और पैसे न होने के कारण बस कंडक्टर ने उनको बस से उतार दिया गया और हैरानी की बीबात ये है की उस बस का थोड़ी दुरी पर Accident हो गया और उन्होंने कहा की भगवान् ने मुझे बचाया।  दूसरी बार जब वे आत्महत्या करने Railway Track जा रही थी तभी बेटी की रोने की आवाज ने उनके बढ़ते कदमोंको रोक दिया और यही वह पल था जिसने उनकी पूरी सोच को बदल दिया तथा जीने का एक उद्देश्य भी दे दिया। उन्होंने निश्चय किया कि उन्हें न सिर्फ अपनी बेटी ममता के लिए बल्कि उस जैसे अनेक बच्चों के लिए जीना है, जिन्हें समाज अपनाने को तैयार नहीं है।


         पिछले तीस सालों में सिंधु ताई 1000 से ज्यादा अनाथ और अनचाहे बच्चों का पालन-पोषण बहुत ही संघर्ष पूर्ण जीवन जीते हुए किया है। इसके लिए उन्होंने वह सब कुछ किया जो वह अपनी बेटी को पालने के लिए करती थी। कई ऐसे मौके भी आए जब अपने बच्चों का पेट पालने के लिए उनके पास पर्याप्त पैसे नहीं होते थे, तब छोटे बच्चों के दूध में पानी मिला देती थी और बड़े बच्चों के खाने में सब्जियों की कटौती होती थी। सिंधुताई के इतने बड़े परिवार को चलाने के लिए कोई व्यवसायिक प्रबंधन कार्य नहीं करता बल्कि उन्ही के परिवार के तीस बच्चे जिनकी उम्र तीस वर्ष या उससे थोड़ी ज्यादा है इसे चलाने में माई की मदद करते हैं।अन्नत महादेवन की फिल्म मी सिंधुताई सपकाल ने अचानक उन्हें पूरी दुनिया में लोकप्रिय बना दिया है। आज वे लोगों की प्रेरणा स्त्रोत बन गई है। देश-विदेश में लोग उन्हें भाषण देने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं। उनके भाषण जीवन को प्रेरणा देने वाले गानों से भरे होते हैं।वे कहती है कि भाषण दिए बिना राशन नहीं मिलता। वे अपने हर भाषण में अपने बच्चों के घर और राशन के लिए अनुदान मांगती हैं।
   उनका भाषण में जब youtube पर देख रहा था तब मेरी आँखे कब पानी से भर गयी पता भी नहीं चला । ऐसे महिला को ''Shubhamzope'' की टीम से शत्-शत् नमन ।

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