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Monday, July 11, 2016

जीरो हमेशा से है हीरो

             एक जीरो का महत्व हमेशा से रहा है।  पूरे विश्व मे शून्य से सभी परिचित रहे है।   किसी संख्याके बाद मे शून्य लगा दो तो उसका परिमाण दस गुना बढ़ जाता है।  लेकिन वहीं किसी संख्या को जीरो से गुणा करने पर जा शून्य जोडने और घटाने का परिणाम वही संख्या रहती है।  शून्य स्वयं मे एक संख्या है वहीं वह एक योगिक संख्या भी है। शून्य का अविष्कार भारत मे हुआ बताया जाता है वैसे ते शूनय काअविष्कार बहुत पहले ही हुुआ था लेकिन पहली बार प्रमाणिक तौर पर दिगंम्बर जैन मुनि सर्वनन्दि ने पहली बार शून्य का अविष्कार किया था।  दशमलव पद्धित का पहली बार उल्लेख किया था।  बाद मे प्रसिद्ध गणित विद और खगोल शास्त्री आर्यभट्टने शून्य के बारे मे बताया और दशमलव पद्धति के जनक उन्ही को बताया गय़ा है।  बाद मे भारत का शून्य कम्बोडिया चीन अरब आदि जगह पर पहुँची जहाँ यह सिफर कहलाई फिर यूरोप के देशो मे इसे जीरो कहा गया। एक के बाद जितने भी शून्य लगाए जाते है उनका अलग मूल्य है जो 1, 10, 100  तथा इसीतरह बढ़ते क्रम मे संख्याओं को भारत मे महा शंख तक नाम दिया गया है। भारत का ब्रह्म गान भी जगत को शून्य से उत्पन्न और शून्य मे विलय बतलाते है। पृथ्वी की आकर्षण शक्ति जहाँ पर शून्य है वह स्थान Space कहलाती है इस तत्य के अन्वेषण से Space Science मे बहुत क्रांन्ति आई यही शून्य हमारे संसद तक पहुँच कर शून्यकाल की महत्ता बनादी। तभी तो कहते हैं जीरो सदा से हीरो। 

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