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Friday, July 15, 2016

तांगेवाला करोड़ पती Coachman To Entrepreneur


        नमश्कार दोस्तों मैं हु Shubham आप सभी का स्वागत करता हु इस Blog  पे। दोस्तों अक्सर कहा जाता है की आदमी के अंदर जज्बा हो कुछ कर गुजरने का तो वो हर परिस्थिती से निकल कर बड़ा आदमी बन सकता है ऐसेही एक शख्स महाशय चुनीलाल आईये थोडा जान लेते है उनके बारेमे।

Type:- Deemed Public Limited Company
Industry:- Food, Spices Founded 1919, Sialkot Founder Mahashay Chuni Lal Headquarters New Delhi Key people Mahashay Dharam Pal Products Chana Masala, Kitchen King, Chunky Chaat Masala, Meat Masala


        महाशियन डी हट्टी (M.D.H), आज ये नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है।  “मसाला किंग”(M.D.H) के नाम से मशहूर महाशय जी आज सफलता की बुलंदियों पर हैं, लेकिन इस सफलता के पीछे एक बहुत संघर्ष भरी कहानी है। इनका जन्म सियालकोट याने की १९४७ के भारत आज़ादी के बाद पाकिस्तान में हुआ था।  ये एक सामान्य परिवार से थे, परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नही थी। महाशय जी जब धीरे धीरे बड़े हुए तो स्कूल में दाखिला कराया ये बचपन से ही पढ़ाई में बहुत कमजोर थे पढ़ने लिखने में बिल्कुल मन नहीं लगता था।  इनके पिता इनको बहुत समझाते लेकिन महाशय जी बिल्कुल भी पढ़ाई पर ध्यान नहीं देते थे, इसी वजह से पाँचवी कक्षा में वो Fail हो गये और इसी के साथ उन्होनें स्कूल जाना भी छोड़ दिया। पिता ने इनको इसके बाद एक बढ़ई की दुकान पर काम सीखने के लिए भेज दिया। कुछ दिन बाद इनका मन बढ़ई के काम में नहीं लगा तो छोड़ दिया। धीरे धीरे समय आगे बढ़ता गया, इसी बीच महाशय जी 15 साल की उम्र तक करीब 50 काम बदल चुके थे। उन दिनों सियालकोट शहर लालमिर्च के लिए बहुत प्रसिद्ध था, यही सोचकर महाशय जी के पिताजी ने एक छोटी सी मसाले की दुकान डाल दी धीरे धीरे व्यापार अच्छा बढ़ने लगा। लेकिन उन दिनों आज़ादीका आंदोलन चल रहा था। 1947, में जब देश आज़ाद हुआ तब  सियालकोट पाकिस्तान का हिस्सा बन चुका था और वहाँ रह रहे हिंदू असुरक्षा महसूस कर रहे थे और दंगे भी काफ़ी बढ़ चुके थे इसी डर से उन्हें सियालकोट छोड़ना पड़ा।  महाशय जी के अनुसार उन दिनों स्थिति बहुत ही डरावनी थी, चारों तरफ मारामारी मची हुई थी। इन्हेंभी अपना घर बार छोड़ कर भागना पढ़ा। बड़ी ही दिक्कत और मुश्किलों से वो नानक डेरा (भारत) पहुचे पर अभी वो शरणार्थी थे उनके पास कुछ नहीं था, उनका सब कुछ लूट चुका था।  इसके बाद सहपरिवार कई मीलों चलकर ये अमृतसर पहुचे।  दिल्ली में इनके एक रिश्तेदार रहते थे, यही सोच कर महाशय जी करोलबाग दिल्ली आ गये। उस समय उनके पास केवल 1500 रुपये थे कोई काम धंधा था नहीं। उन्होनें कुछ पैसे जुटाकर एक तांगा-घोड़ा खरीद लिया। और इस तरह वो बन गये एक तांगा चालक। लेकिन कुदरत को कुछ और ही मंजूर था, दोस्तों अपने साथ भी ऐसा ही होता है बोहोत बार हमको खुद को ही नहीं मालूम होता है की मंजिल कब किस्मत पलट देंगी। करीब २ महीने तक उन्होने कुतुब रोड दिल्ली पर तांगा चलाया| इसके बाद उन्हें लगा की वो ये काम नहीं कर पाएँगे। लेकिन मसाले के सिवा वो कोई दूसरा काम जानते भी नहीं थे, कुछ सोचकर उन्होने घर पे ही मसाले का कामकरने लगे।  बाज़ार से मसाला लाकर घर पर ही उसे कुटते थे और बाज़ार में बेचते थे।  उनकी ईमानदारी और मसालों की शुद्धता की वजह से उनका कारोबार धीरे धीरे बढ़ने लगा। डिमांड ज़्यादा हुई तो मसाले घर ना पीसकर एक व्यापारी के यहाँ चक्की पर पिसवाते थे। एक दिन जब व्यापारी से मिलने गये तो उन्होने देखा कि वह मसालों में मिलावट करता था ये देखकर महाशय जी को मन ही मन बहुत दुख हुआ और उन्होने खुद की मसाला पीसने की Factory लगाने की सोची।  किर्तिनगर में इन्होने पहली Factory लगाई और उस दिन के बाद महाशय जी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और एक के बाद एक पूरे विश्व भर में अपने कारोबार (Business) को फैलाया। आज .M.D.H. एक बड़ा ब्रांड बन चुका है और पूरे विश्व में फैला हुआ है।
           आज महाशय जी बहुत बड़े अरबपति उद्धयोग (Richest Business) के मलिक हैं। महाशय जी की इस छवि से हटकर एक रूप और है वो है समाज सेवा। पूरे भारत में कई जगह उनके द्वारा संचालित विद्धयालय और अस्पताल हैं। कहा जाता है क़ि “इंसान अपनी परिस्थितियों का नहीं अपने फ़ैसलों और कर्मों का परिणाम होता है”, ऐसा ही कुछ सीखने को मिलता है महाशय जी के जीवन से। तो आओ मित्रों हम भी इस महान पुरुष के जीवन से प्रेरणा लेकर सफल बनने का प्रयास करते रहे और दिखा देंगे इस दुनिया को की हम भी कुछ कर सकते है और कर के दिखाएंगे ।

और दोस्तों आखिर में Subscribe और Share करना ना भूले धन्यवाद।


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