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Sunday, September 4, 2016

कचरा बना कचौड़ी (सिख देने वाली कहानी) Garbage Made ​​Shortbread

 
                        
        एक साधू रोज नियत सामई पर  था। उसके रास्ते में एक घर पड़ता था।  जब भी साधु उस घर के निचे  गुजरता तो उस घर की मालकिन हमेशा चिढ़कर अपनी बालकनी से उसके ऊपर कचरा दाल देती।  मगर साधू कोई प्रतिसाद न देकर वहां से शान्ति से चला जाता था।  यह उन दिनों का रोज का नियम हो था।
        वह महिला अकेली रह रही थी क्योंकि उसका बेटा और बहु उसके  व्यवहार से  परेशांन  होकर उसे छोड़कर चले गए थे। एक  साधू उस महिला के घर के निचे से गुजरता तो उस पर कचरा नहीं डाला गया।   ऐसा ही हुआ।  साधु को शंका हुई, 'क्या बात हैं कचरा क्यों  गिरा, कही वह देवी अस्वस्थ तो नहीं ?.' साधू उसके घर पर गया तो वह महिला वाकई बहुत बीमार और अहसहाय पड़ी हुई थी।
        साधु ने Doctor को बुलाकर  इलाज करवाया, उसकी देखभाल की।  दो-तीन दिन में वह महिला ठीक हो गई।  ठीक होने के अगले दिन जब वह साधू रोज की तरह उसके घर के निचेसे गुजर रहा था, तो वह महिला निचे उतर आई और साधु से क्षमा  मांगने लगी।  इस पर साधु, ने कहा ' मैंने तो क्षमा पहले दिन ही दे दी थी, आप तक वह आज पहुँची। ' यहाँ सुनकर महिला ने बहुत आभार व्यक्त किया।  साधु अपने नियमानुसार अगले दिन वह से फिर गुज़रा तो इस बार उसी   बनाकर  लायी।  साधु ने कचोडी का प्रेम से स्वीकार किया और आगे बढ़ चला।


        प्रस्तुत कहानी में अपने  साधु की  से कैसे कचरा , कचौड़ी में परीवर्तित हो गया।  साधु पर  जब  भी  कचरा पड़ता था, तब वह उसे स्वीकार करता था क्योकि दॄढतापूर्वक जानता था की मुझ पर गिर रहा है तो मेरा ही है।  उसके मन में कोई बड़बड़ नहीं होती थी , उलटा वह महिला को मन ही मन क्षमा कर, धन्यवाद दे कर आगे  निकल जाता था। जरुरत  पर महिला की उसने मदद भी की , बिना यह सोचे की वह उसके साथ कितना बुरा व्यवहार करती है।  क्योकि वैसा नकारात्मक विचार उसने पनपने ही नहीं दिया था।  इधर कर्मबन्धन बनता था, उधर वह क्षमा साधना से मिटा देता था।
        साधू की क्षमा साधना का पैनएम यह हुआ की वह महिला से उदारता का व्यवहार कर पाया। जिससे महिला को भी अपने किए का पछतावा होने लगा। उसने भी अपने इस तरह के व्यवहार के लिए क्षमा मांगी।  इस प्रकार कचरा कचौड़ी में बदल गया।  मगर साधु ने अपनी साधना आगे भी जारी राखी।  कचरे की तरह कचौड़ी भी स्वीकार भाव से ली मगर उसमे उलझ नहीं।  अर्थात किसी दिन कचौड़ी नहीं मिली तो भी मन में कोई बड़बड़ नहीं की।  कचरा भी स्वीकार और कचौड़ी से भी कोई  चिपकाव नहीं।  इस तरह क्षमा साधना से वह साधू कर्मबन्धनों से अछूता रहा।
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