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Saturday, July 1, 2017

दुसरो में अच्छाइयां कैसे ढूंढे....?


             नमश्कार दोस्तो मैं हु Shubham आप सभी का स्वागत करता हु इस Blog पे। हमेशा की तरह नई नई कहानियों के साथ आपके सामने हाजिर हु। दोस्तो आज का Article एक महान व्यक्ति पर है, जिन्होंने श्रीमद्भागवत गीता का प्रचार करने के लिए अपनी पूरी जिंदगी बिता दी। जी हां दोस्तो 60 साल Service कर के Ritire होने के बाद उन्होंने अपने गुरु के आदेश का पालन करते हुए पूरी दुनिया मे भगवत गीता को पहुचाना चाहा। ऐसे महान व्यक्ति को मेरा दिल से प्रणाम। उनका नाम श्री चैतन्य महाप्रभु है। आज का Article मैं आपको एक कहानी के माध्यम से समझाना चाहूंगा। तो चलिए ज्यादा समय न लेते हुए शुरू करते है।



              एक दिन चैतन्य महाप्रभु पूरी (उड़ीसा) के जगन्नाथ मंदिर में 'गरुड़ स्तंभ' के सहारे खड़े होकर दर्शन कर रहे थे। एक स्त्री वहां श्रद्धालुओं की भीड़ को चिरती हुई देव-दर्शन हेतु उसी स्तंभ पर चढ़ गई और अपना एक पाव महाप्रभुजी के दाएं कंधे पर रखकर दर्शन करने में लीन हो गई। यह दृश्य देखकर महाप्रभु का एक भक्त घबड़ाकर धीमे स्वर में बोला, 'हाय..... सर्वनाश हो गया! जो प्रभु स्त्री के नाम से दूर भागते है, उन्ही को आज एक स्त्री का पाँव स्पर्श हो गया! न जाने आज ये क्या कर डालेंगे। वह उस स्त्री को नीचे उतारने के लिए आगे बढा ही था कि उन्होंने सहज भावपूर्ण शब्दो मे उससे कहा 'अरे नही, इसको भी जी भरकर जगन्नाथ जी के दर्शन करने दो, इस देवी के तन-मन-प्राण में कृष्ण समा गए है, तभी यह इतनी तन्मयी हो गई कि इसको न तो अपनी देह और मेरी देह का ज्ञान रहा..... अहा! उसकी तन्मयता तो धन्य है.....इसकी कृपा से मुझे भी ऐसा व्याकुल प्रेम हो जाए।'



निष्कर्ष :-
          काम करते समय दुसरो की गलतियों की बजाय अच्छाइयां ढूंढना अपनी आदत में ले, जिससे हमारी गुणवत्ता बढ़े और समय की बचत हो। साथ साथ मे यह आदत हमारे शिष्ट व्यवहार को दर्शाएगी।

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