नमश्कार दोस्तों मैं हु Shubham आप सभी Reader's का स्वागत करता हु एक नए Article के साथ निचे दिया गया संबंधित Article महान श्री ओशो के Book में से लिया गया है पढ़ने में थोडा समझना कठिन होगा लेकिन ध्यान देकर पढ़ेंगे तो जल्द ही समझ आएगा ऐसा में आपको विश्वास दिलाता हु तो आईये पढ़ते है।
साधारणतः प्रेम तुम्हे पशु में उतार देता है। इसलिए तो प्रेम से लोग इतने भयभीत हो गए है; घृणा से भी इतने नहीं डरते जितने प्रेम से डरते है, शत्रु से भी इतना भय नहीं लगता जितना मित्र से भय लगता है। क्योकि शत्रु क्या बिगाड लेगा? शत्रु और तुम में तो बड़ा फसला है, दुरी है। लेकिन मित्र बहूत कुछ बिगाड़ सकता है, क्योकि तुमने इतने पास आने का अवसर जो दिया है। प्रेमी तो तुम्हे बिलकुल निचे उतार सकता है नरको में। इसलिए प्रेम में लोगो को नरक की दुनिया से, भगोड़े बन जाते है। सारी दुनिया में धर्मों ने सिखाया है: प्रेम से बचो। कारण क्या होगा? कारण यही है कि देखा की 100 में 99 तो प्रेम में सिर्फ डूबते है और नष्ट होते है।
प्रेम की भूल नहीं है; डूबने वालोँ की भूल है। और मै तुमसे कहता हु, जो प्रेम में नरक में उतर जाते थे वे प्रार्थना से भी नरक में ही उतारेंगे, क्योकि प्रार्थना प्रेम का ही रूप है। और जो घर में प्रेम की सीढ़ी से निचे उतरते थे वे आश्रम में भी प्रार्थना की सीढ़ी से निचे उतरेंगे। असली सवाल सीढ़ी को बदलने का नहीं है, न सीढ़ी से भाग जाने का है; असली सवाल तो खुद की दिशा बदलने का है।
और स्वयं को न बदल कर सीढ़ी पर कसूर देना, स्वयं की आत्मक्रांति न करके सीढ़ी की निंदा करना बड़ी गहरी नासमझी है। अगर सीढ़ी तुम्हे नरक की तरफ उतार रही है तो पक्का जान लेना कि यही सीढ़ी तुम्हे नरक की तरफ उतार रही हैं तो पक्का जान लेना कि यही सीढ़ी तुम्हे स्वर्ग की तरफ उतार रही है तो पक्का जान लेना की यही तुम्हे स्वर्ग की तरफ उठा सकेगी। तुम्हे दिशा बदलनी है, भागना नहीं है।
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