नमश्कार दोस्तों मैं हु Shubham हमेशा की तरह आज भी मैं एक नया और सुन्दर लेख आपके सामने पेश करने जा रहा हु।
कार्य तभी सफल होता है जब वह योजनाबद्ध तरीके से बिना आलस्य के किया जाय। ऐसा नहीं सोचना चाहिए की 'आज नहीं तो कल....' क्योकि कल कभी आता नहीं, काल जरूर आ जाता है। एक Example लेना चाहूंगा....... लंका में राम-रावण का घोर युद्ध समाप्त हो गया था। श्रीरामजी ने लक्ष्मण से कहा: "आज धरती से एक महायोद्धा, महाबुद्धिमान, महाप्रजापालक जा रहा है। जाओ, उनसे कुछ ज्ञान ले लो।"
लक्ष्मण ने जाकर विनम्र वाणी से रावण को प्रार्थना की, तब लंकेश ने कहा: "मेरे पास समुद्र को खारेपन से रहित तथा चन्द्रमा को निष्कलंक बनाने की योजनाएं थी। अग्नि कही भी जले, धुंआ न हो और स्वर्ग तक की सीढिया मैं बनाता चाहता था ताकि सामान्य आदमी भी स्वर्ग की यात्रा करके आ सके। मुझे प्रजा के लिए यह सब करना था लेकिन सोचा, 'यह बादमे करेंगे।" मैंने विषय-सुख में, जरा नाच में, जरा सुंदरी के साथ वार्ता में, वाहवाही में..... पाँचो विषयों में जरा-जरा करके समय गवा दिया। जो करने थे वे काम मेरे रह गये। इसलिए मेरे जीवन का सार यह है की मनुष्य को अच्छे काम में देर नहीं करनी चाहिए और विषय-विकारो की बात को टालकर उनसे बचते हुए निर्विषय नारायण के सुख को पाना चाहिए, अन्यथा वह मारा जाता है। मेरे जैसे लंकेश की दुर्दशा होती है तो सामान्य आदमी की बात क्या करना!"
इसलिए हे पुरुषार्थी! अलस्यरूपि शत्रु से अपना पिंड छुड़ाकर अपने उच्च उद्देश्य 'सर्वभूहिते रतः' पर केंद्रित हो के सर्वेश्वर-परमेश्वर के नाते कर्म करके उसे कर्मयोग बना लो। सुख-दुःख में समता बनाये रखो, अपनी अमरता को पहचानने का पुरुषार्थ करो और अमर पद पाओ।
और आखिर में Subscribe करना ना भूले धन्यवाद। 😊
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