नमश्कार दोस्तों मैं हु Shubham आप सभी का स्वागत करता हु इस Blog पे। और हमेशा एक नई उमंग के साथ एक नए अंदाज के साथ ये Article पेश करने जा रहा हु।
हमारे जीवन जीने के ढंग के अनुसार हमारी जीवन शक्ति का रहास या विकास होता है। हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियो ने योगदृष्टि से, अंतरदृष्टि से और जीवन का सुक्ष्म निरिक्षण करके जीवनशक्ति विषयक गहनतम रहस्य खोज लिए थे।
ईर्ष्या, घृणा, तिरस्कार, भय कुशंका, आदि कुभावो से जीवन शक्ति क्षीण होती है। भगवतप्रेम, श्रद्धा, विश्वास, हिम्मत और कृतज्ञता जैसे सदभावों से जीवनशक्ति पुष्ट होती है।
किसी प्रश्न के उत्तर में हां कहने के लिए सिर को आगे-पीछे हिलाने से जीवनशक्ति का विकास होता है। Negative उत्तर में सीर को दायें-बाये घुमाने से जीवनशक्ति कम होती है।
हसने और मुस्कुराने से जीवनशक्ति बढाती है। रोते हुए, उदास, शोकातुर, व्यक्ति को या उसके चित्र को देखने से जीवनशक्ति का रहास होता है।
'हे भगवन! हे खुदा! हे प्रभु! हे मालिक! हे ईश्वर! ......' ऐसा अहोभाव से कहते हुए हाथो को आकाश की ओर उठाने से जीवनशक्ति बढ़ती है।
धन्यवाद देने से, धन्यवाद के विचारो से हमारी जीवनशक्ति का विकास होता है। ईश्वर को धन्यवाद देने से अन्तःकरण में खूब लाभ होता है।
और आखिर में Do Subscribe And Share धन्यवाद।
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